Ramayana Kahani for Children with Moral

Ramayana ki kahani में आपका स्वागत है। चाहे आप बच्चे हो या बड़े, आप सभी को रामायण की पूरी कहानी पता होनी चाहिए। अगर आपका जन्म 1980 के लगभग का है तो आपने भी अपने बचपन में टीवी पर रामायण जरूर देखि होगी। पर आज कल के बच्चो को रामायण के बारे में नहीं पता और ना ही पता है की भगवन श्री राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान जी कौन थे। इसलिए आज हम आपके लिए पूरी रामायण short story के रूप में लेकर आये है जो आप अपने बच्चो को 10 – 20 मिनट में बता सकते है। तो चलिए शुरू करते है।

Ramayana Story ke Characters

राम

श्री राम अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे। वे मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रसिद्ध हैं। श्री राम सत्य और धर्म के प्रतीक माने जाते हैं। उन्होंने सीता से विवाह किया और एक वनवास के दौरान रावण द्वारा सीता के हरण के बाद, उन्होंने रावण के विरुद्ध युद्ध किया और विजय प्राप्त की।

सीता

सीता, जो भूमिजा भी कही जाती हैं, जनकपुर के राजा जनक की पुत्री थीं। वे अपार सुंदरता और पवित्रता की प्रतिमूर्ति थीं। सीता ने राम से विवाह किया और उनके साथ वनवास में गईं। सीता का रावण द्वारा हरण किया गया था, लेकिन बाद में श्री राम ने उन्हें मुक्त कराया।

लक्ष्मण

लक्ष्मण राम के अनुज और दशरथ के पुत्र थे। वे अपने भाई श्री राम और भाभी सीता के साथ चौदह वर्षों के वनवास पर गए थे।

हनुमान

हनुमान एक वानर देवता हैं जो अपनी अद्भुत शक्ति, बुद्धि, और भक्ति के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण की सहायता की और सीता की खोज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

रावण

रावण लंका का राजा था और बहुत शक्तिशाली राक्षस था। उन्होंने माता सीता का हरण किया, जिससे श्री राम के साथ उनका युद्ध हुआ। रावण के दस सिर थे और वह एक बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति भी था।

भरत

भरत श्री राम के भाई और दशरथ के पुत्र थे। जब राम वनवास पर गए, तो भरत ने अयोध्या में राम के नाम पर शासन किया। वे अपने भाई राम के प्रति गहरी निष्ठा रखते थे।

रामायण की लघु कथा

1. श्री राम का जन्म

भगवान राम का जन्म अयोध्या के महाराजा दशरथ और उनकी पत्नी कौशल्या के घर हुआ था । रामायण के अनुसार, राजा दशरथ ने विशेष यज्ञ ‘पुत्रकामेष्टि’ किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। ये चारों पुत्र थे – राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न। इनमें राम सबसे ज्येष्ठ यानि बड़े थे और उन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है।

श्री राम के जन्म के समय संपूर्ण ब्रह्माण्ड में उत्सव जैसा माहौल था, और अयोध्या में हर तरफ खुशियां मनाई जा रही थीं। राम नवमी के दिन श्री राम का जन्म हुआ था इसलिए इसे आज भी पूरे भारत में एक बड़े त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रत, पूजा-अर्चना और भजन-कीर्तन के द्वारा लोग श्री राम की भक्ति करते हैं। श्री राम को आदर्श शासक, मर्यादा पुरुषोत्तम, और धर्म का प्रतीक माना जाता है।

बालक श्री राम की शिक्षा-दीक्षा में उन्हें धर्म, नीति, साहस और वीरता की शिक्षा दी गई। उन्होंने बचपन से ही विशेष रुचि साहित्य और धनुर्विद्या में दिखाई। उनके चरित्र का विवेचन रामायण में बहुत ही श्रेष्ठ और आदर्शपूर्ण तरीके से किया गया है, जो उन्हें एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करता है वे सदैव धर्म का पालन करने वाले, अत्यधिक धैर्यवान, सत्यनिष्ठ और अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित रहे।

2. विश्वामित्र के साथ वन यात्रा

एक समय पर, महर्षि विश्वामित्र राजा दशरथ के पास आते हैं और श्री राम और लक्ष्मण से अपनी यज्ञ सुरक्षा में सहायता मांगते हैं। राजा दशरथ प्रारम्भ में संकोच करते हैं, क्योंकि श्री राम अभी भी किशोर हैं, लेकिन विश्वामित्र के आग्रह पर वे मान जाते हैं।

श्री राम और लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ वन में चले जाते हैं, जहाँ उन्होंने ताड़का, मारीच और सुबाहु जैसे असुरों का वध किया। इस दौरान विश्वामित्र ने श्री राम को अनेक दिव्यास्त्र भी सिखाए। विश्वामित्र के साथ उनकी यह यात्रा उनके चरित्र निर्माण और इतिहास के महत्वपूर्ण अस्त्र-शस्त्र ज्ञान प्राप्ति का समय थी।

यह यात्रा युवा श्री राम के जीवन की प्रथम बड़ी चुनौती थी, जिसे उन्होंने अपने साहस और वीरता से पार किया। इस अवस्था में उनका पराक्रम और अध्यात्मिक ज्ञान दोनों में ही वृद्धि हुई। इस यात्रा के अनुभवों ने उन्हें भविष्य के कठिन कार्यों के लिए तैयार किया।

3. सीता स्वयंवर

राजा जनक के यहाँ मिथिला में एक भव्य स्वयंवर का आयोजन हुआ जहाँ राजकुमारी सीता का हाथ मांगने हेतु अनेक राजा और शासक एकत्रित हुए। राजा जनक ने शर्त रखी कि सीता का वर वही बनेगा जो भगवान शिव के धनुष को उठाकर उसके तरकश से बाण चला पाएगा। यह धनुष भारी और अविजय माना जाता था।

भारत के सभी महान योद्धा और राजा इस धनुष को उठाने में असफल रहे। अंततः, विश्वामित्र के प्रोत्साहन से, श्री राम धीरे से आगे बढ़े और न केवल उन्होंने धनुष को उठाया, बल्कि प्रयास में उसे तोड़ भी दिया। इस अलौकिक कार्य से श्री राम ने सभी को प्रभावित किया और सीता के वर के रूप में चुने गए। सीता ने श्री राम को वरमाला पहनाई और इस प्रकार उनका विवाह हुआ।

4. वनवास

श्री राम के पिता राजा दशरथ ने निश्चय किया कि राम को राजगद्दी सौंपने का समय आ चुका है। लेकिन राजा की दूसरी पत्नी कैकेयी ने अपने पुत्र भरत को राजा बनाने की मांग की, जो उन्होंने पूर्व में राजा से प्राप्त किए गए दो वरदानों के अधिकार का उपयोग किया। कैकेयी ने मांगा कि श्री राम को चौदह वर्ष के वनवास में भेजा जाए।

राजा दशरथ असमंजस में पड़ गए लेकिन श्री राम ने बिना किसी आपत्ति के वनवास स्वीकार कर लिया । उन्होंने धर्म और पिता की आज्ञा के प्रति अपने निष्ठा दिखाई। सीता और लक्ष्मण ने भी श्री राम का साथ देना चुना, और इस तरह ये तीनों वन की ओर चल पड़े। इस घटना से अयोध्या नगरी के सभी लोगो को और राजा दशरथ को बहुत दुख हुआ।

वनवास काल के दौरान श्री राम, सीता और लक्ष्मण ने अनेक ऋषि-मुनियों की सहायता की, राक्षसों का संहार किया और वन क्षेत्र के अनेकानेक उपवनों में निवास किया। उनका वनवास भारतीय इतिहास में तपस्या, साहस और आत्म-साक्षात्कार की एक अमिट यात्रा के रूप में उल्लेखित है।

5. सूर्पणखा की नाक कटना

सूर्पणखा, लंका के राजा रावण की बहन थी। एक दिन जब वह पंचवटी में श्री राम और लक्ष्मण के समीप पहुँची, तो वह श्री राम की और आकर्षित हो गई। उसने उन्हें अपना पति बनाने का प्रस्ताव रखा, परंतु श्री राम ने सिलसिलेवार और विनोदपूर्ण ढंग से उसे लक्ष्मण की ओर मोड़ दिया। जब सूर्पणखा लक्ष्मण के पास गई, तो उन्होंने भी उसे श्री राम की ओर वापस भेज दिया। इससे क्रोधित होकर सूर्पणखा ने सीता पर हमला कर दिया।

अपनी भाभी की रक्षा के लिए, लक्ष्मण ने सूर्पणखा की नाक और कान काट दिए। यह घटना ना सिर्फ सूर्पणखा के लिए अपमानजनक थी बल्कि यही वह बिंदु था जहाँ से रामायण के युद्ध का प्रारंभ होता है। सूर्पणखा अपमानित होकर लंका लौटी और रावण को पूरी घटना की जानकारी दी, जो आगे चलकर सीता के हरण का कारण बनी।

6. सीता हरण

सूर्पणखा द्वारा सीता की सुन्दरता का वर्णन सुनकर लंका के राजा रावण के मन में उन्हें प्राप्त करने की लालसा जाग उठी। उसने सीता का हरण करने का षड्यंत्र रचा। रावण ने मायावी विद्या का प्रयोग कर मारीच को स्वर्ण हिरण के रूप में परिवर्तित किया, जिसे देख सीता मोहित हो गईं। माता सीता के आग्रह पर श्री राम ने उसे पकड़ने का प्रयास किया और इसी बीच माता सीता को अकेला देखकर रावण ने उनका हरण कर लिया और उन्हें अपने साथ पुष्पक विमान में बैठकर लंका ले गया।

इस दौरान, माता सीता ने अपने आभूषणों को धरती पर गिराती गयी ताकि श्री राम को उनके हरण का संकेत मिल सके। जब श्री राम और लक्ष्मण वापस लौटे तो सीता को वहाँ न पाकर वे अत्यंत व्याकुल हो उठे। सीता की खोज में उन्होंने वनवासी जीवन के विभिन्न स्थानों की खोज शुरू की। माता सीता का हरण रामायण के मुख्य अंगों में से एक है और इसी के साथ एक महा युद्ध की नींव रखी गई।

7. हनुमान मिलन

रामायण में हनुमान से श्री राम का मिलन एक ऐसा प्रसंग है जो भक्ति और शक्ति के अद्भुत संयोजन को दर्शाता है। किष्किंधा के राज्य में, जब श्री राम और लक्ष्मण सीता की खोज कर रहे थे, तो उनकी भेंट वानर सेना के पराक्रमी योद्धा और सुग्रीव के मंत्री महाबली हनुमान से हुई। इस मिलन का क्षण रामायण के गौरवशाली पलों में गिना जाता है क्योंकि यहीं से रामायण की कहानी में एक नया मोड़ आता है।

हनुमान ने श्री राम के प्रति अपनी प्रबल भक्ति और सेवा भाव के जरिए रामायण की कथा में अपना एक अद्वितीय स्थान बनाया। श्री राम और लक्ष्मण के साथ उनकी पहली मुलाकात ऋष्यमूक पर्वत पर हुई, जहां वे सुग्रीव के आश्रय में रह रहे थे। हनुमान ने एक साधु के रूप में उनसे संवाद स्थापित किया, उनकी परीक्षा ली और उनके सच्चे चरित्र को समझा।

श्री राम और लक्ष्मण को जब यह विश्वास हो गया कि वे माता सीता की खोज में उन्होंने एक सच्चे सहयोगी को पा लिया हैं, तो महाबली हनुमान जी ने उनको अपना वास्तविक रूप दिखाया । हनुमान के रूप, गुण और कार्य का वर्णन रामायण में बड़े ही रोचक और भावपूर्ण तरीके से किया गया है। उनकी आज्ञाकारिता, साहस, और राम के प्रति अपार प्रेम ने राम-हनुमान की मित्रता को अमर बना दिया।

हनुमान श्री राम से मिलने के बाद सुग्रीव के पास जाते है और उन्हें श्री राम के साथ मित्रता करने के लिए प्रेरित करते है। उनके इस सहयोग से ही श्री राम को सीता की खोज में सफलता मिलती है और वानर सेना का सहयोग भी प्राप्त होता है। माता सीता को खोजने का कार्य बजरंगी हनुमान को ही सौंपा जाता है, जो वह बखूबी पूरा करते है।

हनुमान की सेवाभावना और समर्पण के कारण ही आज हम उन्हें ‘संकटमोचन’ के रूप में पूजते हैं। उनका जीवन और कार्य हमें सिखाता है कि अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में भी भक्ति, दृढ़ संकल्प और कर्मठता से कोई भी कठिनाई पार की जा सकती है। हनुमान और श्री राम की इस भेंट का विवरण हमें बताता है कि मानवता, धर्म और निष्ठा के प्रति सच्ची आस्था किसी भी संकट को पराजित कर सकती है।

8. लंका दहन

हनुमान माता सीता की खोज में समुद्र पार करके लंका पहुंचे। वहां उन्होंने सीता को अशोक वाटिका में पाया, जहाँ रावण ने उन्हें कैद कर रखा था । हनुमान ने सीता को श्री राम की अंगूठी देकर उन्हें साहस और संत्वना दी और राम के संदेश को पहुंचाया। माता सीता ने हनुमान को अपना चूड़ामणि (एक रत्नजटित आभूषण) दिया ताकि वह श्री राम को ये संकेत दे सकें कि हनुमान उनसे मिलने आये थे ।

लंका में हनुमान जी की पहचान उजागर होने के बाद उन्हें बंधक बनाने की कोशिश की गई और उनकी पूँछ में आग लगा दी गई। हनुमान ने अपनी असीम शक्तियों का प्रयोग करके न सिर्फ अपने आप को उस बंधन से मुक्ति कराया बल्कि अपनी जलती हुई पूँछ से पूरी लंका में भी आग लगा दी। इसे ‘लंका दहन’ के नाम से जाना जाता है, जो रामायण में हनुमान के पराक्रम का प्रतीक है।

हनुमान की मिलन और लंका दहन की कहानी रामायण में उनके वीरता, चतुराई और भक्ति का शानदार प्रदर्शन करती है। हनुमान ने ना केवल श्री राम की सेवा की बल्कि उन्होंने धैर्य, समर्पण और निष्ठा की एक नई मिसाल कायम की।

9. राम-रावण युद्ध

माता सीता का पता लगने के बाद, श्री राम ने वानर सेना के साथ मिलकर लंका पर आक्रमण करने का निश्चय किया। समुद्र को पार करने के लिए नल और नील की अगुवाई में एक विशाल सेतु का निर्माण किया गया, जिसे ‘राम सेतु’ या ‘आदम का पुल’ के नाम से भी जाना जाता है। वानर सेना ने लंका पहुंचकर रावण की सेना के साथ युद्ध किया।

इस भयानक युद्ध में अनेक वीर योद्धाओं का संहार हुआ। अंततः, राम और रावण का सामना हुआ। रावण शिवजी का भक्त था और उसे विशेष वरदान प्राप्त थे, जिसके कारण उसे पराजित करना बहुत कठिन था। परंतु प्रभु राम ने, विभीषण की सलाह मानते हुए अंततः रावण के नाभिकुंड में बाण चलाकर उसे पराजित किया, क्योंकि उसके अमरता का रहस्य उसी में छिपा था। इस प्रकार रावण का वध हुआ और माता सीता को मुक्त कराया गया।

इस घटना ने धर्म की अधर्म पर विजय की शाश्वत संकल्पना को स्थापित किया। राम-रावण युद्ध धर्म और न्याय की प्रबलता, और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

10. राम का अयोध्या लौटना

रावण का वध करने और सीता को मुक्त कराने के बाद, श्री राम ने सुग्रीव और विभीषण की मदद से लंका में शांति स्थापित की। चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण करके श्री राम, सीता और लक्ष्मण पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे। उनके लौटने के समाचार से प्रजा में हर्षोउल्लास की लहर दौड़ गई। पूरे राज्य में दीपावली मनाई गई, जिसे आज भी ‘दीपोत्सव’ के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

श्री राम ने अयोध्या लौटकर राज्य संभाला और एक आदर्श राजा के रूप में राज्य का पालन किया। उनके राज्याभिषेक से रामराज्य की स्थापना हुई, जो किसी भी शासन के लिए आदर्श के प्रतिमान के रूप में देखा जाता है। राम का अयोध्या लौटना और राज्याभिषेक उनके कर्तव्य, आदर्श, और न्याय के प्रति समर्पण को दर्शाता है।

ये दोनों अध्याय रामायण की यात्रा के समापन भाग हैं और नैतिकता, धर्म और कर्तव्य के प्रति अभिप्रेरणा की गाथा का समाहार करते हैं। कथा का यह भाग शिक्षाप्रद हैं और जीवन में उचित मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

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